भारत और स्वीडन ने 75 से अधिक वर्षों से सहयोगात्मक संबंध बनाए रखे हैं, जिसमें टिकाऊ औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया गया है। हाल ही में, दोनों देशों ने दुबई में COP28 के दौरान इंडिया-स्वीडन इंडस्ट्री ट्रांज़िशन पार्टनरशिप (ITP) शुरू की। इस पहल का उद्देश्य भारी उद्योगों, विशेष रूप से इस्पात और सीमेंट क्षेत्रों के डीकार्बोनाइजेशन को बढ़ावा देना है, जिससे स्वच्छ और टिकाऊ उत्पादन विधियां सुनिश्चित की जा सकें।
ITP के उद्देश्य
इंडस्ट्री ट्रांज़िशन पार्टनरशिप का लक्ष्य नवाचार को प्रोत्साहन देकर और प्रमुख परियोजनाओं के लिए वित्त पोषण सुनिश्चित करके भारी उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन को कम करना है। यह औद्योगिक उत्सर्जन को कम करने के लिए बाजार-आधारित समाधान तैयार करने और वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
इस्पात उद्योग का डीकार्बोनाइजेशन
दुनिया के दूसरे सबसे बड़े इस्पात उत्पादक के रूप में, भारत इस क्षेत्र में उत्सर्जन को कम करने के महत्व को समझता है। इस्पात उत्पादन में उत्सर्जन को कम करना न केवल पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाता है बल्कि वैश्विक निवेश आकर्षित करता है और भारत को हरित औद्योगिक विकास में अग्रणी के रूप में स्थापित करता है।
उत्सर्जन कम करने की रणनीतियां
इस्पात उत्पादन में उत्सर्जन को कम करने के लिए मुख्य रूप से दो प्रमुख तरीकों पर काम किया जा रहा है:
इसके अतिरिक्त, स्क्रैप स्टील की पुनर्प्राप्ति और पुनर्चक्रण को बढ़ाना भी महत्वपूर्ण है। हालांकि, हरित हाइड्रोजन की उच्च लागत और स्टील स्क्रैप की सीमित उपलब्धता जैसी चुनौतियों का समाधान किया जाना आवश्यक है। नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार, बेहतर धातु पुनर्चक्रण और नीतिगत समन्वय के साथ एक समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
उपभोक्ताओं की भूमिका
निर्माण और ऑटोमोबाइल निर्माण जैसे क्षेत्र कम उत्सर्जन वाले इस्पात की मांग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये उद्योग टिकाऊ सामग्रियों को प्राथमिकता देकर और ट्रैसेबिलिटी में सुधार करके स्वच्छ उत्पादन विधियों में निवेश को प्रोत्साहित करते हैं।
उत्सर्जन में कमी के लिए भारतीय प्रयास
भारतीय इस्पात निर्माता नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग, संसाधन दक्षता में सुधार और उत्पादन प्रक्रियाओं का अनुकूलन करके उत्सर्जन को कम करने के उपाय अपना रहे हैं। कुछ कंपनियों ने शून्य-कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पायलट परियोजनाएं भी शुरू की हैं।
सरकार का समर्थन और हरित इस्पात रोडमैप
भारतीय सरकार इस्पात क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा और हरित हाइड्रोजन के उपयोग को बढ़ावा दे रही है। इस्पात मंत्रालय का हरित इस्पात रोडमैप सार्वजनिक खरीद पहलों, कम उत्सर्जन वाले इस्पात के लिए प्रोत्साहन और स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिए वित्त पोषण जैसे उपायों को शामिल करता है।
वैश्विक साझेदारियां और भविष्य की दृष्टि
लीडआईटी (LeadIT) जैसे अंतरराष्ट्रीय गठबंधन कम उत्सर्जन वाले इस्पात उत्पादन के लिए मानक स्थापित कर रहे हैं और भारत जैसे देशों को वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मार्ग प्रदान कर रहे हैं। इस्पात उद्योग के लिए स्वच्छ ऊर्जा और नवीन प्रौद्योगिकियों में निवेश, महत्वपूर्ण आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ प्रदान कर सकता है।
India and Sweden have maintained a collaborative relationship for over 75 years, with a shared emphasis on promoting sustainable industrial development. Recently, the two nations launched the India-Sweden Industry Transition Partnership (ITP) at COP28 in Dubai. This initiative aims to drive the decarbonization of heavy industries, particularly steel and cement, to achieve cleaner and more sustainable production methods.
Objectives of the ITP -
The Industry Transition Partnership seeks to cut emissions from heavy industries by fostering innovation and securing financing for key projects. It aims to establish market-driven solutions to reduce industrial emissions while promoting global sustainability goals.
Decarbonizing the Steel Industry -
As the world’s second-largest steel producer, India recognizes the critical importance of decarbonizing the steel sector. Reducing emissions in steel production can enhance environmental sustainability, attract global investments, and position India as a leader in green industrial development.
Strategies for Reducing Emissions -
Two primary methods are being explored to minimize emissions in steel production:
1. **Hydrogen-based Production**: Transitioning from conventional blast furnaces to processes powered by green hydrogen.
2. **Electric Arc Furnaces (EAFs)**: Expanding the use of EAFs that rely on renewable energy sources.
Additionally, increasing the recovery and recycling of scrap steel is a crucial component. However, challenges such as the high cost of green hydrogen and limited availability of steel scrap must be addressed. A coordinated approach involving renewable energy expansion, improved metal recycling, and policy alignment is essential for success.
Role of Consumers -
Sectors like construction and automobile manufacturing play a vital role in driving demand for low-emission steel. By prioritizing sustainable materials and improving traceability, these industries encourage investments in cleaner production methods.
Indian Efforts in Emission Reduction -
Indian steel manufacturers are adopting renewable energy sources, improving resource efficiency, and optimizing production processes to lower emissions. Some companies have already launched pilot projects aimed at achieving net-zero carbon emissions.
Government Support and Green Steel Roadmap -
The Indian government is actively promoting the adoption of renewable energy and green hydrogen in the steel sector. The Ministry of Steel’s green steel roadmap includes public procurement initiatives for low-emission steel and offers incentives for recycling and financing clean energy projects.
Global Partnerships and Future Outlook -
International coalitions like LeadIT are setting benchmarks for low-emission steel production and offering pathways for countries like India to meet global climate goals. Investments in clean energy and innovative technologies for the steel industry hold the potential to deliver significant economic and environmental benefits.